गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
मां शून्य
आध्यात्मिक दर्शन
मां शून्य ज्ञान मार्ग की प्रमुख प्रतिनिधि हैं, जिनका जीवन अद्वैत और वेदांत के सनातन ज्ञान को समकालीन संदर्भ में प्रस्तुत करने के लिए समर्पित है। उनकी शिक्षण शैली की विशेषता यह है कि वे गहन आध्यात्मिक सिद्धांतों को इस प्रकार प्रस्तुत करती हैं कि साधारण व्यक्ति भी उन्हें आसानी से ग्रहण कर सके।
जटिल दार्शनिक अवधारणाओं को सरलता से समझाने की उनकी अद्वितीय क्षमता ने अनेक साधकों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाया है। उनका मानना है कि “ज्ञान” केवल पुस्तकीय नहीं, बल्कि अनुभवात्मक होना चाहिए, जिसे जीवन में उतारा जा सके।
आध्यात्मिक यात्रा
त्रिज्ञान पद्धति – आत्म ज्ञान, माया का ज्ञान और ब्रह्म ज्ञान – के माध्यम से मां शून्य साधकों को उनके वास्तविक स्वरूप से परिचित कराती हैं। गुरु क्षेत्र के आशीर्वाद से प्रेरित होकर उन्होंने मेरठ में कैवल्याश्रम की स्थापना की, जो आज आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए एक प्रमुख केंद्र बन गया है।
मां शून्य की विशेषता यह है कि वे किसी एक मार्ग तक स्वयं को सीमित नहीं रखतीं। हालांकि उनका मुख्य फोकस ज्ञान मार्ग है, वे भक्ति मार्ग, कर्म मार्ग और राज योग के साधकों का भी मार्गदर्शन करती हैं, यह मानते हुए कि हर साधक की आध्यात्मिक यात्रा अद्वितीय होती है।
संपर्क माध्यम
आप मां शून्य से विभिन्न माध्यमों से जुड़ सकते हैं:
अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं और प्रश्नों के साथ आप इन माध्यमों से मां शून्य से संपर्क कर सकते हैं। आश्रम में आयोजित सत्संग, ध्यान शिविर और त्रिज्ञान कार्यक्रमों की जानकारी भी इन्हीं माध्यमों से प्राप्त की जा सकती है।
"जब साधक तैयार होता है, तब सद्गुरु स्वयं प्रकट होते हैं। ज्ञान की यात्रा बाहर नहीं, भीतर की ओर होती है। सत्य की खोज का आरंभ स्वयं को जानने से होता है।"
- मां शून्य
त्रिज्ञान कार्यक्रम
आत्म ज्ञान – मैं क्या हूँ?
आत्म ज्ञान त्रिज्ञान का पहला चरण है, जिसमें साधक अपने वास्तविक स्वरूप की खोज करता है। इसमें हम जानते हैं कि हम शरीर, मन और बुद्धि से परे हैं। माँ शून्या के मार्गदर्शन में साधक सरल भाषा में अपने आत्म स्वरूप से परिचित होते हैं और यह अनुभव करते हैं कि “मैं” कौन हूँ। और पढ़ें →
माया का ज्ञान – जगत क्या है?
माया का ज्ञान त्रिज्ञान का दूसरा महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें हम इस भौतिक जगत की वास्तविकता को समझते हैं। वेदांत के अनुसार, जगत माया है – न पूर्णतः सत्य, न पूर्णतः असत्य। माँ शून्या इस जटिल अवधारणा को सरल उदाहरणों से समझाती हैं, जिससे साधक जगत के प्रति अपनी दृष्टि बदल सकें। और पढ़ें →
ब्रह्म ज्ञान – परम सत्य क्या है?
त्रिज्ञान का तीसरा और अंतिम चरण है ब्रह्म ज्ञान – परम सत्य की पहचान। यह ज्ञान बताता है कि ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, जो सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और शाश्वत है। माँ शून्या के मार्गदर्शन में साधक इस परम सत्य का अनुभव करने की ओर बढ़ते हैं, जिससे जीवन में शांति और परमानंद की प्राप्ति होती है। और पढ़ें →